बेला बहतरी 
रूत बसंतआई रसा, हरख अवर हुल्लास। 
फबै बिरछ फल फूलडा, वसुधा विविध विलास।। 
वसुधा विविध विलास बेल गल बांहड़ी। 
लागै आछी लोक छिता पर छांहड़ी।। 
जगत अलंक्रत जोर वन्सपति विस्तरै। 
घणी भ्रमर गुंजार लगावै गस्त रै।।1।। 
                    रुत बसंत सागै रही, मचियौ फागणमास। 
                      नव सिणागार धरा नखै, जोबन आणंद जास।। 
                      जोबन आणंद जास छीण पत छांडवै। 
                      पत्ता हीणा पेड़ कूंपलां काढ़वै।। 
                      बिरहण मन बिसरांम पलक नीं पावसी। 
                      कोयल कर कर कूक क हूक उठावसी।।2।। 
                    आम्र जामून आंवला, पलै नारंगी पूर। 
                      जींम सुपारी नारियाल, खली महुआ खजूर।। 
                      खली महुआ खजूर करौंदा केलिया। 
                      लींची सरीफा लोंग क मौजां मेलिया।। 
                      कटहल बड़हल क्रीत जंजीरी जायफल। 
                      रचिया मचिया रूंख सेवना व्ही सफल।।3।। 
                    लता बेलड़ी घण जदी, फूलां फलांज फेर। 
                      सौरभ थईसंसार में, मान बसंती मेर।। 
                      मान बसंती मेर केतकी केवड़ा। 
                      कुजा गुलाब कुन्द बरगसद बेवड़ा।। 
                      चम्पा निवरी चमेल क करना केसरी। 
                      मालती मल्लिका स्वेत सुगन्ध विसेस री।।4।। 
                    मेल बसंती मरुधरा, सोभा इसी सजाय। 
                      झीणी रेत गुलाल ज्यूं, उड उड नेड़ी आय।। 
                      उड उड नेड़ी आय नीर कम नाड़ियां। 
                      खेजड़ नींब बबूल क कूंपल काढियां।। 
                      फागण गाता फिरै, छबीला छोकरा। 
                      चंग बजावै चाय डूलै मन डोकरा।।5।। 
                    चिणा गेहूं हरिया चहर, धाणा सौरम धार। 
                      सिरसूं रा पीला सुमन, ओप रया इकसार।। 
                      ओप रया इकसारा क जीरौ जोर में। 
                      राइ रायड़ै राम दिखै सुभ दौर में।। 
                      धरती गहौर धांन क खुबियां खात में। 
                      कर मैणत किरसांण भाग लै हाथ में।।6।। 
                    हरिया सब भाखर हुवा, सोभा देत सवाय 
                      इला हरौ जिम ओरणौ, ओढ'र ऊभी थाय। 
                      ओढ'र ऊभी आय छबी नद छोर में। 
                      बन लहराय बसंत प्रभा अठ पोर में। 
                      कर रह्या किलोल क पंछी प्रात में। 
                      सीतल बहै समीर सुगन्धी साथ में।।7।। 
                    सारस कपोत सारिका, चातक चास चकोर। 
                      कोयल खंजन कागला, हंसा लेत हिलोर।। 
                      हंसा लेत हिलोर क्रौंच सुक कुंडला। 
                      लींका भ्रमर लावक बेलाक बक बला।। 
                      मदन साल टिंकमोर हारीज हुलासिया। 
                      कुरज तीतर कारंड बसंत बिलासिया।।8।। 
                    व्याघ्र वराह व्याल वरु, सावर खर सारदूल। 
                      सियाल गोमायौ सरभ, बानर विधना मूल।। 
                      वानल विधनां मूल क चम्मर चीतरा। 
                      जरख रींचछा जोर पसु नहीं प्रीत रा।। 
                      मिरग हस्ती महीस वणेटी वरगड़ा। 
                      रे मस्ती रितुराज क जंगल में जड़ा।।9।। 
                    मलयाचल मुक्तागिरो, हेमालौ हिमवंत। 
                      अस्ताचल अचल अरबुदा, वाल्ही लगै बसंत। 
                      वाल्ही लगै बसंत विद्याचल वेवता। 
                      बेताढ़ उदयावास क रूपी रेवता।। 
                      कूट चित्र त्रीकुट धोलगिरी गोरधन। 
                      नीलगिरी नैसद्य कला केलास बन।।10।। 
                    गंगा जमुना गोमती, रक्तवती कुलरुप। 
                      सोवन भद्रा सुरसती, सिप्रा सिन्धु सरुप।। 
                      सिप्रा सिन्धु सरुप, गंडक गोदावरी। 
                      माही चम्बल माल किसणा कावीर।। 
                      बिरमपुत्रज बनास ताप्ती ताज में। 
                      मन्द गति जल मांय रही रितुराज में।।11।। 
                    फागण मास बसंत फल, विरहण रै दुख वास। 
                      चंदौ वालै चांमड़ी, सोरा लहै न सास।। 
                      सोरा लहै न सास बाबहियौ बोलवै। 
                      दिल ऊपर दुधार छिनौछिन छोलवै।। 
                      भोजन नांही भाय काय कुमलायगी। 
                      बेरण इस बसंत छिता पर छायगी।।12।। 
                    पूजै विमला पंचमी, विद्या समुत विकास। 
                      सिंवरातां आला सफल, अनुरागी उपवास।। 
                      अनुरागी उपवास गाईजै गीतड़ा। 
                      फागण मस्ती फेर रसम अर रीतड़ा।। 
                      बेला इसी बसंत नेह पथ सूझवै। 
                      घर नारी गिणगोर प्रेमसूं पूजवै।।13।। 
                    कांकड़ सूखी घास कित, नाडां निठतौ नीर। 
                      केर सांगरी साग कर, भोजन जीमौ वीर।। 
                      भजोन जीमौ वीर रायतौ राबड़ी। 
                      रूखा भरिटा रोट छोकरो छाबड़ी।। 
                      नीरण वाड़ै नायक पसु थकिया परा। 
                      मेल बसंती एम मानियै मरुधरा।।14।। 
                    लोकै उतरण लागियौ, मास चेत घण मांन। 
                      तपती बढ़ी बसंत तज, धरियौ ग्रीखम ध्यांन।। 
                      धरियौ ग्रीखम ध्यांन क दीरध दीहड़ा। 
                      लघुरातां में लाभ छबी दिन छीहड़ां।। 
                      रे बीतौ रितुराज क ओलूं आवसी। 
                      सह रुत में सिरमोड़ बसंत सु भाववसी।।15।। 
                    रामनमीं तप  नोरता, पग  ग्रीखम परवेस। 
सीख लही बसंत सुख, दाझै  ग्रीखम देस।। 
दाझै ग्रीखम देस निसा ठंड नीसरै। 
गहरी नींद घुराय क साथी सीस रे।। 
दिन तपता दौपार क सिंझ्या सांतरी। 
प्रात समै भरपूर क आभ ऐकांत री।।16।। 
                    चेती गरमी चेत में, उतर्यां  बढ़गी ओर। 
                      अंवेर रह्या उनालियां, जीरी गेहूं जोर।। 
                      जीरौ गेहूं जोर क रातौ रायड़ौ। 
                      बांटण दाम बजार क करसौ बायड़ौ।। 
                      भर गेहूं भण्डार कोरडू  काढवै। 
                      समझदार किरसांण  क गरिमा जाडवै।।17।। 
                    वेला आदी ब्याव री, महिमा  ग्रीखम मांय। 
                      सोरी हुवै सगाइयां, देखौ ग्रीखम दाय।। 
                      देखौ ग्रीखम दाय क जांनां जोर  री। 
                      भूलां किम बैसाख बाय री भोर री।। 
                      सद नव जुड़ता साख क गाला गिनायतां। 
                      खचा खाता खूब क महिमा मायतां।।18।। 
                    मरुध में भूखां मरै, चारा  बिन पसु चाम। 
                      सजल नाडियां सूखगी,  गहुजर रह्या दिन गांम।। 
                      गुजर रह्या दिन गांम क मोलौ मांनखौ। 
                      फोड़ौ तोड़ौ फेर क घीणा धांन कौ।। 
                      गायां भैंस्यां गोर क चाटै चांम नै। 
                      हाडक निकलया हाय ! रहम ना रांम नै।।19।। 
                    ब्याज कमावै बांणिया, सौदा साहूकार। 
                      अड़ अड़ दहै उधारियां, अरज  कराय अपार।। 
                      अरज कराय अपार गीरबां गौर ना। 
                      भूख टाबरां भाग जुगाड़ां जोर ना।। 
                      होवै सोसण हाय निरधनां नांम री। 
                      देखौ सकल संसार दिपै प्रभ दांम री।।20।। 
                    आवियां बैसाख  अरध, तपती  बदलै तोर। 
                      प्रात सांझ सुख पायलौ, दोपारां  दुख दोर।। 
                      दोपारां दुख  दोर छियां ना छोडणी। 
                      लूवां लागी लौर क असकी ओढ़णी। 
                      ठंडा पौरां ठीक तेज कम तावड़ौ। 
                      मटकी ठंडी मीत नीर ढिग नावड़ौ।।21।। 
                    छानड़ झूंपड़ छाविया,  तपती यूं कम ताय। 
                      निरधन रै साधन नहीं, ओही  एक उपाय।। 
                      ओही एक उपाय क जीरौ राबड़ी। 
                      कांदौ खाबौ काट क रोट्यां छाबड़ी।। 
                      ठंडै मटकै ठीक क पांणी पीवणौ। 
                      ग्रीखम मांय  गरीबां इणविध जीवणौ।।22।। 
                    धनवानां साधन  धरा, खरा  मौज रा खांण। 
                      हाचा भवन हवेलियां, गरब करै गुजरांण।। 
                      गरब करै गुजरांण क कूलर कोड में। 
                      घूमण कार धरांह हुकमी होड में।। 
                      वातानुकलू विलास  ठंडाई ठाट री। 
                      मिंकजियां सरबत्त  क चीजां चाट री।।23।। 
                    खाट रालियौ खेतड़ां,  किरसाणां कुसलात। 
                      आखातीज सु  आयगी, सुगन  हलोत्या साथ।। 
                      सुगलन हलोत्या साथ क खड़वै खेतड़ा। 
                      सजनी करती सूड़ क हूनर हेतड़ा।। 
                      घरमें दूजै गोल आय लै आसरौ। 
                      गहरी नीं घुराय क वपुज विकास री।।24।। 
                    बलती बाजै बारणै,  तपती भीतर ताय। 
                      ग्रीखम दोरी  गांबड़ां, मरुधर  थलवट मांय।। 
                      मरुधर थलवट मांय क बाजै बायरी। 
                      सूनी सड़कां सहर करै रिछ काय री।। 
                      उड़ती रेत आकास दिनकर न दीखवै। 
                      बल तल तौ बेसाख सुनिजरां सीख  वै।।25।। 
                    जेठ मास तपियौ जबर, खबर  लही ना खेर। 
                      चिंतव लहै चपेट में, लागी  लूवां लेर।। 
                      लागी लूवां लेर रिक्त सह रासता। 
                      तपियौ सूरज तेज घुट्टत गुमासता।। 
                      डरती छिया दोपार लुकगी लोक में। 
                      दुरलभ बलती देंण क चलणौ चोक में।।26।। 
                    पंख्यां हाथां  में पकड़,  घर  रह्या घुमाय। 
                      बातां में चित ना भलै,  सबनै तपत सताय।। 
                      सबना तपत सताय क डाडै डोकरा। 
                      मोला स्सै मोट्यार कछीजै  छोकरा।। 
                      चाम पसीनौ चवै क गोरी घूंघटै। 
                      भूल गया स्सै भूख तिस जल ना मिटै।।27।। 
                    मिरग दुखी ग्रीमख मही, तपती बालू ताय। 
                      भरण चौकड़ी भूलगा,  ऊभा खेजड़ आय।। 
                      ऊभा खेजड़ आयय क टलगा टोलियां। 
                      रींछ बानरा रोझ क छोडी छोलियां।। 
                      ब्याकुल व्है  वनराज न सूझ सिकार री। 
                      सहन करां किम सूलक ग्रीखम मार  री।।28।। 
                    राल रही तप रोहिणी, हिरणी  व्याकुल होय। 
                      भूंडी हालत भैसियां, सुर भी दुखिया सोय।। 
                      सुर भी दुखिया सोय  नीर ना नीरणी। 
                      नैणां झरतौ नीर गीड रेतड़ घणी।। 
                      धणियां नाहंी  ध्यान रामजी रुसगौ। 
                      काल जेठअति कढ़ण खून चित चूंसगौ।।29।। 
                    पंछी प्यासा पांणियां, उडणौ भूल्या आज। 
                      पड़िया ओठै पेड़ रै पेख परी सर पाज।। 
                      पेख परी सर पाज क दुर लभ दांणियां।। 
                      भूल्या करण  किलोल क छोडी बांणियां।। 
                      मास जेठ अधमांय क मोली मरुधरा। 
                      सारा खूट्यां संज क प्रांणी पाधरा।।30।।                    
                    बजियां साडी पाचं बस, ऊघै दिनकर आय। 
नौ बजियां सूं नासती, छिताज ग्रीखम छाय।। 
छिताज ग्रीखम छाय दोपारां दाझवै। 
ठंडा पोर न ठंड लोक में लाजवै।। 
बजियां साडी सात अक चल आंथवै। 
निसा ठंड अब नांय क ग्रीखम गांथवै।।31।। 
                    दाझै बलती देह नैं, बाजै मिरगां बाय। 
                      ब्योम इला अब बाय सूं, आंधी में अंधलाय।। 
                      आंधी में अंधलाय खेह भर खेतड़ा। 
                      बहतां पंथ बिचाल रलै सिर रेतड़ा।। 
                      चल भरिया घणा चाय क बालू बाय री। 
                      मग फिरवै मजबूर केमै रिछ काय री।।32।। 
                    सीतल कुच अर मुख ससी, वेणी सीतल वास। 
                      भेट्यां इतरा भागियां, सोरा ग्रीखम सास।। 
                      सोरा घ्रीखम सास क सोरभ सांतरी। 
                      मावर रै ढिक मेल व्यथा किण बातरी।। 
                      संग सोला सिमगार सरद ही साजवै। 
                      से सोरा दिनरात देह नीं दाझवै।।33।। 
                    बेरण बिरहण री बणी, ग्रीखम बेला गेह। 
                      बलती भीतर बार सूं, देखौ दाझै देह।। 
                      देखौ दाझै देह क तिसणा तेजव्ही। 
                      सोतां रात सवाय सूल सम सेजव्ही।। 
                      ब्योम सुधाकर बास बिस बरसाविया। 
                      नैमां बहवै नीर क ओलूं आवियां।।34।। 
                    गिण गिण दिन दोरा घणा, निकलै ग्रीखम नाम। 
                      जेठ उतरते जीवड़ा, कोजौ तपती काम।। 
                      कोजौ तपती काम आसाढ़ आवियौ। 
                      ऊमस थई आकास हियौ हिलावियौ।। 
                      घट छावै घटराट अमूुझै अंग में। 
                      सुगनी रूपी न समीर रै तपती रंग में।।35।। 
                    बिरखा हीणौ बीतणौ, औ बिकराल असाढ़। 
                      जागी व्याधी जीवड़ा, जग छयौ दुख जाड़।। 
                      जगग छायौ दुख जाड़ मरै पशु मोकला। 
                      पंछी बिन पांणीह खुटै हुय खोखला।। 
                      धीरज वाला धीर छिता पर छोड़ियौ। 
                      दुख रौ खद्दर दीह आसाढ़ ओढियौ।।36।। 
                    बिन बिरखा आसाढ़ बस, जागै ब्याधी जोर। 
                      नीर अन्न अरु नीरणी, काटी खाली कोर।। 
                      काटी खाली कोर क आय उबासियां। 
                      कडणा दिन्न कठिण क मरुधर वासियां।। 
                      नेड़ी बिरखा नांय क ठंडौ बायरौ। 
                      टाबर भैंस्यां टाट घणौ दुख गाय रौ।।37।। 
                    सूतौ ऊगै दूज समी, हाकौ सारै होय। 
                      त्यारी आ कालां तणी, कारी लगै न कोय।। 
                      कारी लगै न कोय क ऊमस आंतरी। 
                      सीतल रात सवाय व्यथा हर भांतरी।। 
                      बाबइयौ कित बलयौ व्योम ना बोलवै। 
                      औ इसड़ौ आसाढ़ क छाती छोलवै।।38।। 
                    इन्दु दूज आसाढ़ रौ, ऊभौ जै ऊगन्त। 
                      ऊमस थाय आकास में, हिव किरसांण हसन्त।। 
                      हिव किरसांण हसन्त क हिलया हाथ में। 
                      गावै तेजौ गीत प्रात चाल पाथ में।। 
                      नाड्यां आयौ नरी क बावै बाजरी। 
                      आभ थई इल आज क गिगनां गाजरी।।39।। 
                    चेत बेसाख जेठचल, और इसौ आसाढ़। 
                      ग्रीखम ताया गांवड़ां, हिलिया सहरां हाड।। 
                      हिलिया सहरां हाड क भारत वासियां। 
                      मरुध ग्रीखम मांय पड़ै गल पासियां।। 
                      मोके सबरौ मान जरूतां जांणियै। 
                      बिरखा ग्रीखम वसु, प्रताप पिछांणियै।।40।। 
                    खादर भरिया खलक में, आदर मास असाढ़। 
                      भा बरसालै पुनरबसु, काल कूट दै काढ़।। 
                      काल कूट दै काढ़ पुखां परताप तैं। 
                      सावण बढ़ियौ सीर जटी कै जापतैं।। 
                      आलय ललना ऊभ क नयण निहार में। 
                      इसटा करै उडीक सजी सिणगार में।।41।। 
                    विधू वदन वाताय चख, गरिमा छाई गेह। 
                      रम्म नासिका अधर रदन, दामण कामण देह।। 
                      ़दामण कामण देह लगै चित लालसा। 
                      चिकुर नागणी चाल पयोधर पालसा।। 
                      करां कुसेसय कांत क मावर मेलियां। 
                      तरुणी सावण तीज करावत केलियां।।42।। 
                    असले कां बूठां इला, जणजण व्याधी जोय। 
                      बाढ़ा थई वसुन्धरा, हांणी जवरी होय।। 
                      हांणी जवरी होय टूटगा टापरा। 
                      पसु बहिया परिवार महि अणमाप रा।। 
                      जणणी रोती जाय क बेटी बेयगी। 
                      अन्तरजामी आज लोक सुख लेयगौ।।43।। 
                    बढ़ियौ जबरौ बाजरौ, कछु न मोठां कांण। 
                      तिल ज्वार गवारां तणा, नहचै करौ निदांण।। 
                      नहचै करौ निदांण हरख हरियालमियां। 
                      गहौर बढ़ियौ घास क धोरां पालियां।। 
                      खोल लावणी खूब ठेह भर ठांम न। 
                      गायां भैेंस्यां गोर क ऊभी खांण नैं।।44।। 
                    राखी साखी रीत री, हिन्दू धरम हमेस।ष 
                      भाई रिच्छक बहर रा, दीपै कीरत देस।। 
                      दीपै कीरत देस क बिरखा बूझवै। 
                      जलम आठम जहान प्रेम सूं पूजवै।। 
                      झडियां लागी जोरपट्ट सीला पड़ै। 
                      मोटा चवै मकान गुलिक झूपंड़ झड़ै।।45।।                    
                    भादव झड़ियां बापरी, मेलौ गिरिसर मांय। 
ऊंट बैलिया अस्व इ, बेगा मेह बिकाय।। 
बेगा मेह बिकाय क गोगौ गांव रौ। 
खावण सेवां खीर क नेही नांव री।। 
सुकला ग्यारस साथ जलासय झूलणौ। 
नेकी सूं रख नेह भगवत न भूलणौ।।46।। 
                    भरिया सरवर भादवै, हरिया तरवर होय। 
                      पसु चरिया भर पेटड़ा, सोरा करिया सोय।। 
                      सोरा करिया सोय किरसांण कोड में। 
                      समझ जमानै साख क हालै होड में।। 
                      बे छक भरिया बान साान सिंचाईयां। 
                      औ है काल उपाव कराय कमाईयां।।47।। 
                    परवाई बाजै परी, मास भदावै मांय। 
                      बिसार लहरावै विविा, डोल्यां खेत डराय।। 
                      डोल्यां खेत डराय क गहरा बास में। 
                      बाजर बढ़ियौ बोत जंवारां रास में।। 
                      फूलां तिल्ल फबाय महिमा मूंगड़ा। 
                      मक्की मूंग फलीह तारीफ तक्कड़ा।।48।। 
                    बिरखा ाीमी यूं भई, आय गयौ आसोज। 
                      साद बिरामण सराद में, चाय माल बेचोज।। 
                      चाय माल बेचोज अन विसवास में। 
                      हिन्दु संस्कृति हाथ पुजावत पास में।। 
                      नोरतां देवी नांव घमौ पूजन कियौ। 
                      ऊगै तारौ अगस्त मेह घर पूगियौ।।49।। 
                    बिजय दसमी उछब बिबिा, देह रावण दजाय। 
                      सरद पूनम तणौ ससी, ब्योम सुमन बरसाय।। 
                      व्योम सुमन बरसाय खीर रख डागलै। 
                      मेलौ बार मतीर अरोगौ साकलै।। 
                      उतर गयौ आसोज क काती कोड में। 
                      साखां पीछम समीर हालै होड में।।50।। 
                    पावस रुत जाती प्रभा, हाजर ओस हमेस। 
                      महिना काती मांयनै, पथसरदी परवेस।। 
                      पथ सरदी परवेस क दीपै दीवला। 
                      आणंद घर घर आज घुटै गुड़ घीवला.। 
                      घर घर करली घमासाफ सफाईयां। 
                      लिछमी पूजत लोक क मेल मिठाईयां।।51।। 
                    ओठै सोवण आविया, मझ काती रै मांह। 
                      ाीरा पग सरदी ारै, डरपै डोकरियांह।। 
                      डरपै डोकरियांह मसोड़ां मांयनैं। 
                      पग पग जुगती पूर करै रिछ काय नैं।। 
                      सबद सरद रौ सुणत कांपवै कालजा। 
                      डरडर बोलै डैंण रजाई रालजा।।52।। 
                    मछौ पोकर मरुारा, सरदी रौ संदेस। 
                      नीर लिै घमा नावंता, पुन्याई परवेस।। 
                      पुन्याी परवेस तां पंचतीरतां। 
                      लहारां सरदी लेय बेगली बीरतां।। 
                      करै जीवड़ौ कवण सरद सूं सामनौ। 
                      साान लिया समाल उपै नहं आमनौ।।53।। 
                    मिंगसर लाग्या मानियै, जबर सरद रौ जोर। 
                      लाटा काडै लोगड़ा, देखां तप रौ दोर।। 
                      देखां तप रौ दोर दिलासा देवण। 
                      नर सोवै नजदीक क लाटा लेवणा।। 
                      मांचै रजाई मेल क कांौ केसलौ। 
                      घर सूं नांही घणौ फिरंता फेसलौ।।54।। 
                    आाौ मिगसर ऊतरै, उनाली प्रभ ओर। 
                      सरसूं चिणा गेहूं सरब, जांण रायड़ै जोर।। 
                      जांण रायड़ै जोर हुई हरियालियां। 
                      फबवै पीला फूल भरै हिव भालियां।। 
                      मिरच रही मुरजाय क पूरी पाकवै। 
                      जीरौ ऊगत जांण क तर तर ताकवै।।55।। 
                    पौ लागां ारती परै, कीनौ सरदी कोप। 
                      हिलणौ चलणौ ना हुवै, रै दीना पग रोप।। 
                      रै दीना पग रोप क बाजै बायरी। 
                      दिन रा ही दपटीज करां रिछ कायरी।। 
                      छियां भागवां छोड तुरंता तावड़ै। 
                      बिन कामल रै बार अबै नीं आबड़ै।।56।। 
                    घर ऊंडै सूता घमा, पछै रजाई पास। 
                      करड़ी सरदी कारमै, गूदड़ ना गरमास।। 
                      गूदड़ ना गरमास क गोडा घेरिया। 
                      लीयौ मूंड लुकाय हाथ ना हेरिया।। 
                      दिन चढ़ियां दोपार छान नै छोडणौ। 
                      सरदी रौ संदेस ऊपरां ओडणौ।।57।। 
                    बजिया ऊगै इण बगत, सूरज साडी सात। 
                      पोर हेक सरदी प्रभा, घालै तन पर घात।। 
                      घालै तन पर घात दुपारां दीनवै। 
                      तावड़ सरण तिहार लोग स्सै लीनवै।। 
                      ठंडा पौरां ठंड कोप लोकै कियौ। 
                      अस्ताचल दिस अरक पांच बज पूगियौ।।58।। 
                    सांझ पड़ी भड़िया सबै, ऊंडै झूंपड़ आज। 
                      पौस रात ठंडी पड़ै, करां न बाहर काज।। 
                      करां न बाहर काज चाम नैं चीर वै। 
                      जमगौ पालौ जेम नाड़ियां नीर वै।। 
                      रोस कियौ आरात क तड़कौ तायगौ। 
                      सरदी रौ सरणाट छिती पर छायगौ।।59।। 
                    ार थलवट पीछम ारा, सेखावाटी साथ। 
                      मरुार में सरदा मुजब, हाचा मारै हाथ। 
                      हाचा मारै हाथ सरद नै सांकड़़ी। 
                      छिन भर दहै न छूट इला पर आंखड़ी।। 
                      जतन सरीरां जोर रामजी राखसी। 
                      बस नां मिनखा ंबात क सरदी साखसी।।60।।                    
                    हालै ठंड हिमाल सूं, बाजै उतरी बाय। 
धरणां कांपै थलवटां, मरुधरियौ मुरझाय।। 
मरुधरियौ मुरझाय ठंड री ठोकरां। 
सरदी लागी सेंग छोकरी छोकरां।। 
नकिलै घर सूं नांय बूढ़ियां बारणै। 
जोबन मिनखां जोर कमी इण कारणै।।61।। 
                    डरता सरदी डोकरा, संन्निणा संधाय। 
                      ताता भजोन पौस तूं, राजी बिन रंधाय।। 
                      राजी बिन रंधाय सांच संकरात में। 
                      बड़ा तिल्लडां बीच खीचड़ौ साथ में।। 
                      गुड़ तेलां रा घणा चाइजै चूरमा। 
                      भोेजन विविध बणाय संजोगी सूरमा।।62।। 
                    बेल्यां सरदी सूं बचण, ओला निरधन ओड़। 
                      झूलां धनिकां जोर री, ठीक पायगा ठोड़़।। 
                      ठीक पायगा ठोड़ गोर री गावड़ी। 
                      भैंस्यां ऊभी बीच क देवण डावड़़ी।। 
                      किरसांणा रौ कोड धन औ धानही। 
                      इण कारण ही आज मनीजै मान ही।।63।। 
                    पौस मास परताप सूं, रै मचियौ घण रोग। 
                      मांचै सूता मोकला, जबरौ सरदी जोग।। 
                      जबरौ सरदी जोग डोकरी डोकरा। 
                      बचिया जुव न बीच छोकीर छोकरा।। 
                      बेदां घरै बदाण क रै कमाईयां। 
                      हुयगी हालत हाय ! क भूंडी भाईयां।।64।। 
                    ताय ताय सरदी तदिन,परौ बीतियौ पौस। 
                      धीमौ अब पड़ियौ धरा, जांणक सरदी जोस।। 
                      जांणक सरदी जोस, महीनौ माघ रौ। 
                      आबै धंवरा ओर भविस रै भगा रौ।। 
                      दिनकर रौ दरसाव पोर नीं ठा पड़ै। 
                      लुकगौ धूंवर लार बयल डर बापड़ै।।65।। 
                    दारा भड़ियां देवती, पापड़ बटती पास। 
                      रांध परी राबोड़ियां, खिचिया सूखै खास।। 
                      खिचिया सूखै खास मास पौ मायनैं। 
                      संज करै घम साग चितसूं चायनैं।। 
                      कम खच में काम चलावण चावना। 
                      करजौ दूर कराय भामणी भावना।।66।। 
                    मरुधर बरसै मावठौ, साथे सरद समीर। 
                      छोका छोका छोड़ियौ, धीरज वाला धीर।। 
                      धीरज वाला धीर सदर सूं सूखगा। 
                      फट दी सरदी फेंट चेतणा चूकगा।। 
                      निरबल भूंडौ नूर क चिपिया चामड़ा। 
                      हाथ पेर अब हाय ! करै ना कामड़ा।।67।। 
                    परणी घर व्है पौस में, साचौ ओडण संज। 
                      सेवन भोजन सांतरा, भाग्यां पड़ै न भंज।। 
                      भाग्यां पडै न भंज सियालै सांत रै। 
                      पेरण बाघा पूर कऊं नित चांत रै।। 
                      पुरसराथ पर भाव जमी अन जोर में। 
                      मिनखां राखै मेल क ठोरम छोर में।।68।। 
                    माघ महिना मानखै, सरद न अधिक सताय। 
                      पतझड़ लागौ पेड़ नूं, झड़ झड़ पत्ता जाय।। 
                      झड़ झड़ पत्ता जाय क रूंखां रूंखडां। 
                      दरखत बूंडा दरसण टोई टूकड़ां।। 
                      रै आवै रितुराज छिता बन छावसी। 
                      कोयल करै किलोल आणंद आवसी।।69।। 
                    जाती सरदीजोर सूं, छोडै अपणी छाप। 
                      नागौरी पसु नांव रौ, मेलौ करै न माफ।। 
                      मेलौ करै न माफ क लाखूं लौगड़ा। 
                      सरदी रही सताय क टांडै टोगड़ा।। 
                      गुरला ऊंटा गाज हय हिणाहिणाट वै। 
                      बेल्या फूंदा बन्ध क नामी नाटवै।।70।। 
                    एक झलक देखां अवर, सिंवरातां संजोग। 
                      बची कुची इसड़ै बगत, लेवै सरदी लोग।। 
                      लेवै सरदी लोग क फागण फेलियौ। 
                      गहरी उडै गुलाल क जोबन झिलयौ।। 
                      ढमकै पांच्यू ढोल क ठमकौ ठायगी। 
                      होली साथै हमें क सरद सिधायगी।।71।। 
                    गरमी री महिमा घणी, पावस आभ अपार। 
                      जीणौ होवै जगत में, बिन सरदी बेकार।। 
                      बिन सरदी बेकार तपत घम तायलै। 
                      पकै न फसलां पूर कमी रुज कायलै।। 
                      बरसै ना बरसात बसंत न बापरै। 
                      दीज्यौ सरदी देख जपां हरि जापरै।।72।।                    
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